Monday, June 7, 2010

Criminal and Divorce suits filed by woman on FRIVOLOUS grounds of Saari

Another typical case where an EMPOWERED woman files frivolous CRIMINAL as well as  Divorce cases. To add spices to the divorce petition, she even goes to the extent of frivolously accusing her innocent hubby of extra-marital affairs.


There are several such women who do not want to put any efforts in understanding the prospective in-laws before marriage, nor want to make any adjustments post-marriage.
And then post-marriage, they resort to dirty tricks of dragging all the in-laws into CRIMINAL cases, and label the husband as 'adulterous'.


Again, the typical behavior of judges where they do not take notice of the harassment meted out to the husband's family because of such frivolous case.
This INACTION of the judges is the single biggest reason why false and frivolous cases do not cease in India.


A very beautiful comment by someone on this news article:
आजकल पड़ी लिखी और खुद के पैरों पे खड़ी लड़की को हर चीज़ अपनी समझ से देखने की आदत है और ना तो उसे दूसरे की समझ को समझने की ज़रूरत है और अगर किसी ने उसे समझाने की कोशिश की तो वो मॉडर्न नहीं है, इस खबर को उसी खबर से जोड़ कर देखे तो निष्कर्ष निकलता है आजकल की लड़की जो चाहे करे , उसे अगर किसी ने टोका तो वो क्रूरता है , किसी ने उसे समझाया तो वो क्रूर है , पति अपनी पति के लिए अड्जस्ट करे तो समझदार और वोही पति अपनी पत्नी से यही अपेक्षा करे तो वो क्रूर, कुल मिलकर इस देश में परिवार नाम की संस्था का विघटन तो तय है क्योंकि लड़किया मॉडर्न हो गयी है और उन्होने मॉडर्निटी का मतलब भी अपने हिसाब से गड़ लिया है.


http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5918106.cms

साड़ी के नाम पर तलाक नहीं मिल सकता: हाई कोर्ट
12 May 2010, 0050 hrs IST,पीटीआई  
मुंबई।। साड़ी पहनने में बेशक उलझन भरी ड्रेस हो, खासकर पंजाबी ड्रेस सलवार सूट के मुकाबले में, लेकिन इसके नाम पर शादी को खत्म नहीं किया जा
 सकता। बॉम्बे हाई कोर्ट ने यह आदेश दिया है। जस्टिस ए. पी. देशपांडे और जस्टिस रेखा की एक डिविजन बेंच ने होम्योपैथिक डॉक्टर अलका (बदला हुआ नाम) की याचिका को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि हिंदू मैरिज एक्ट के मुताबिक ससुराल वालों का साड़ी पहनने के लिए दबाव डालना 'क्रूरता' के तहत नहीं आता।

अलका और आनंद की शादी जून 2003 को हुई थी। जल्द ही पति और ससुराल वालों से लड़ाई झगड़े के बाद अलका मायके आकर रहने लगी। अलका ने न सिर्फ पति, सास और पति की दो बहनों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न और क्रिमिनल केस दायर किया, बल्कि फैमिली कोर्ट में तलाक के लिए भी पिटिशन डाल दी।

इसमें अलका ने क्रूरता के कुछ उदाहरण दिए, जिनमें पति के अवैध संबंध को प्रमुख उदाहरण बताया गया है। इसके अलावा एक शिकायत यह है कि ससुराल वाले साड़ी पहनने का दबाव डालते हैं। फैमिली कोर्ट ने अलका की याचिका रद्द कर दी थी, जिसके खिलाफ अलका हाई कोर्ट पहुंची थीं। हाई कोर्ट ने भी फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। अन्य आरोपों को साबित करने के लिए अलका ठोस सबूत नहीं जुटा सकीं, इसलिए कोर्ट ने तलाक की पिटिशन खारिज कर दी। साड़ी वाले मामले पर कोर्ट का कहना था कि साड़ी पहनने के लिए कहना उस 'क्रूरता' के दायरे में नहीं है, जिसके तहत तलाक दे दिया जाए।


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